
आरती संग्रह-
अपने आराध्य देव को प्रसन्न करने और अपनी कामना उनके समक्ष रखने की विधि को आरती कहते हैं , ऐसा भी कह सकते है कि अपने आराध्य देव की स्तुति हम शुध्द घी और तेल का दिया जलाने के अलावा कपूर और धूप दिखाकर आरती के रूप में नित्य सुबह और शाम करते हैं । ऐसा करने से मन को शान्ति मिलती है । नित्य प्रात: मन्दिर के पट खोलने के पश्चात मन्दिर की सफ़ाई की जाती है और उसके बाद सभी देवी देवताओं की आरती बन्दना की जाती है । किसी भी तरह की पूजा-अनुष्ठान के पश्चात आरती करना पूजा का एक अभिन्न अंग है जिसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है ।
घर या मन्दिर में आरती के समय आरती में शामिल होने से भी मनोकामना पूर्ण होती है और पूजा में किसी भी तरह की कमी रह गई हो तो वो भी पूर्ण मानी जाती है । सायं काल में भी घर या मन्दिर में आरती के पश्चात मन्दिर को बन्द किया जाता है या घर के मन्दिर में पर्दा कर दिया जाता है ताकि आराध्य देव शयन कर सकें । और फ़िर पुन: उन्हें जगाया जाता है ।
आरती के पश्चात भगवान को पुष्पांजलि अर्पित की जाती है । आरती के समय शंख और घंटी के अलावा अनेक प्रकार के वाद्य यन्त्र बजाने का भी विधान है। बडे-२ मन्दिर और घाटों पर जैसे कि हरिद्वार में गंगा आरती, बनारस घाट की आरती और प्रयागराज की आरती , वैष्णों देवी की आरती, महा कालेश्वर की आरती के अलावा अन्य जगह पर होने वाली आरती का नजारा तो देखने लायक रहता है । धार्मिक स्थल पर होने वाली आरती में शामिल होना बडे सौभाग्य की बात होती है ।
आरती करने के पश्चात जाने अंजाने में किये गये पापों के लिये अपने आराध्य देव से क्षमा याचना करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है । जब भी कोई भक्त श्रध्दा और भक्ति के साथ ईश्वर से प्रार्थना करते हैं तो ईश्वर उनकी प्रार्थना शीघ्र ही सुन लेते हैं । आरती के पश्चात प्रभु को साष्टांग प्रणाम करना भी आरती का अभिन्न अंग है ।
माता रानी की आरती संग्रह – आरतियों का संग्रह 🙏
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