कुम्भ मेले के इस दौरान की विशेष तिथियाँ
ग्रह-नक्षत्रों के विशेष संयोग होने पर ही शाही स्नान किया जाता है। दूसरा सूर्य और बृहस्पति भी कुंभ की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं।
1. जब भी सूर्य मेष राशि में तथा बृहस्पति कुंभ राशि में आते हैं तो पवित्र हरिद्वार में कुम्भ मेला का आयोजन होता है।
2. जब देवगुरु बृहस्पति वृष राशि में तथा सूर्य मकर राशि में आते हैं तो प्रयागराज में कुम्भ मेला का आयोजन होता है।
3. जब बृहस्पति और सूर्यदेव दोनों वृश्चिक राशि में आते हैं तो कुंभ मेला का आयोजन उज्जैन में होता है।
4. जब बृहस्पति और सूर्यदेव सिंह राशि में आते हैं तो पवित्र कुंभ का आयोजन महाराष्ट्र के नासिक में होता है।
हम आपको बताते चलें कि कुम्भ का मतलब कलश अर्थात घडा होता है । समुद्रमंथन के दौरान जिन पवित्र स्थलों पर अमृत जल छलका था उन्हीं स्थानों पर कुम्भ और अर्ध कुम्भ मेला का आयोजन होता है।
मनुष्य का शरीर पंच तत्वों से मिलकर बना है और इसमें जल का प्रमुख स्थान है। जल जीवन है और गंगा जल के महत्व को शास्त्रों ने भी महत्वपूर्ण बताया है।
विष्णु पुराण में कुम्भ के महात्म्य के बारे में वर्णन आया है कि कार्तिक मास के एक सहस्र स्नान, माघ मास के एक सौ स्नान, वैशाख मास के एक करोड, स्नान का जो फ़ल मिलता है
वही फ़ल कुम्भ मेला के दौरान स्नान करने से प्राप्त हो जाता है। ऐसे ही अश्वमेघ और वाजपेय यज्ञ से मिलने वाले फ़ल की प्राप्ति भी कुम्भ स्नान से प्राप्त हो जाती है।
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मनुष्य इसी कामना में कुम्भ मेला स्नान के लिये जाता है कि जाने अनजाने में यदि कोई पाप कर्म हो गया हो तो उस से मुक्ति मिल जाय और जीवन का मार्ग सरल और सुगम हो जाय।
अब यदि कुम्भ अर्थात कलश की बात विस्तार से की जाय तो शास्त्रों में कलश के स्वरूप और महत्व को इस प्रकार बताया गया है। –
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिता: ,
मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:।
कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विप वसुंधरा,
ऋग्वेदोथ यजुर्वेद सामवेदोऽथर्वण:।
इसका तात्पर्य सीधा सा यही है कि कलश के मुख भाग में विष्णु, कंठ में रुद्र , और मूल भाग मे ब्रह्मा जी का वास है और इसमें समस्त सागर , सप्त द्वीप, समस्त नदियां और चारों वेद समाहित हैं।
गौर करने की बात ये भी है कि मनुष्य के हाथों में भी देव तीर्थ , ब्रह्म तीर्थ , पितृ तीर्थ, अग्नि तीर्थ, ऋषि तीर्थतीर्थ होने का विवरण है और श्राध्द के दौरान इन्हीं तीर्थो से तर्पण करने से पित्रों को मोक्ष प्राप्त होने की बात हमारे शास्त्र पुराणों में कही गई है।
तीर्थ वहां होते है जहां देवताओं का वास होता है एक जगह वर्णन आया है कि :-
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती ।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम ॥
तात्पर्य यह है कि हाथों के अग्र भाग में लक्ष्मी जी, मध्य भाग में सरस्वती जी और हाथों के मूल भाग में गोविन्द भगवान का वास होता है।
अत: यह स्पष्ट है कि हमारे शरीर में भी पवित्र कुम्भ की तरह समस्त देवी-देवताओ का वास है। और हमारा शरीर भी कुम्भ का ही प्रतीक है।
समुद्र मन्थन के बाद राहु द्वारा अमृत पान कर देने के बाद भगवान ने अपने चक्र से उसका सिर और धड अलग कर दिया था और आगे चलकर ग्रह मण्डल में यही राहु और केतु के रूप में दो ग्रह बनें।
यूं तो कुम्भ मेला के दौरान कभी भी गंगा स्नान किया जा सकता है परन्तु ग्रहों के अनुकूल कुछ खास मौकों पर विभिन्न राशि के जातकों के लिये स्नान करने का अलग ही महत्व है।
आइये कुम्भ मेला के दौरान खास तिथियों की जान्कारी आपको देते हैं।
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इस बार शाही स्नान की प्रमुख तिथियां इस प्रकार हैं :-
पहला शाही स्नान: 11 मार्च महाशिवरात्रि के शुभ अवसर पर,
दूसरा शाही स्नान: 12 अप्रैल सोमवती अमावस्या पर,
तीसरा शाही स्नान: 14 अप्रैल मेष संक्रान्ति पर,
चौथा शाही स्नान: 27 अप्रैल चैत्र पूर्णिमा पर
वैसे तो सम्पूर्ण कुम्भ के दौरान स्नान दान का अपना ही महत्व है लेकिन ग्रहों के योग संयोग के आधार पर हम आपको बताते चलें कि किस राशि के जातकों के लिये कौन सा दिन उत्तम लाभदायी रहेगा।
मेष-
मेष राशि के जातक यदि काम काज में दिक्कत , आर्थिक परेशानी , स्वास्थ्य में कमी और मानसिक चिन्ता महसूस कर रहे हैं
तो आपके लिये 11 मार्च पहला, 14 अप्रैल तीसरा और 27 अप्रैल चौथा शाही स्नान के अवसर पर गंगा स्नान करके जन्म कुण्डली में स्थित पितृ दोष, काल सर्प दोष और ग्रहण दोष या अन्य किसी भी दोष की शान्ति के लिये
पूजा दानार्चन और शान्ति करने के साथ जाने अनजाने में किये गये समस्त पापों से मुक्ति पाने के लिये उत्तम फ़लदायी रहेगा।
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वृष-
वृष राशि के जातक जिन्हें नौकरी व्यवसाय में परेशानी, धन की सस्मस्या और शिक्षा साक्षात्कार में अडचन आ रही हो
तो आपके लिये 11 मार्च को श्रध्दा भाव से प्राप्त: काल गंगा स्नान करके जन्म कुण्डली में स्थित अरिष्ट ग्रहों के निमित्त दान , पूजा, जप , और किसी भी प्रकार के दोष की शान्ति के अलावा जाने अनजाने में किये गये पापों से मुक्ति पाने के लिये शुभ फ़लदायी है।
मिथुन -
मिथुन राशि वाले जिन्हें व्यक्तिगत जीवन अर्थात प्रेम प्रसंग या वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड रहा है या व्यवसाय में उतार चढाव की स्थिति हो
या फ़िर जन्म कुण्डली की महा दशा, अन्तर दशा ,प्रत्यन्तर दशा के चलते मानसिक तनाव और परेशानियों का सामना करना पड रहा हो तो
वे कुम्भ पर्व के दौरान 12 और 27 अप्रैल के दिन श्रध्दा भाव से गंगा स्नान करके कुण्डली के अरिष्ट ग्रहों की पूजा , दान ,जप और शान्ति करने के अलावा मोक्ष प्राप्ति के लिये जाने अनजाने मे किये गये पापों से मुक्ति पाने हेतु उत्तम है।
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कर्क -
कर्क राशि के ऐसे जातक जिनके काम में रुकावट , तरक्की में बाधा , कानूनी मामलों में असफ़लता और फ़िजूल के खर्चे यदि आपकी परेशानी बढा रहे हैं तो आपके पास सुनहरा मौका है
कि 11 मार्च, 12 और 14 अप्रैल के दिन शुध्द भाव से प्रात: काल गंगा स्नान करके कुण्डली के अरिष्ट ग्रहों के साथ कुण्डली में उपस्थित जो भी दोष हों
उनकी विधिवत शान्ति करायें। ऐसा करने से उन्नति का मार्ग प्रशस्त होगा और साथ ही जाने अनजाने में किये गये पापों से भी मुक्ति मिलेगी।
सिंह -
सिंह राशि के जातकों के लिये इस पावन कुम्भ पर्व के दौरान 14 और 27 अप्रैल के दिन गंगा स्नान करके अपनी कुण्डली के दोषों को दूर करने का सुनहरा मौका है।
इसके अलावा इसी दौरान तीर्थ पर पूजा, पाठ, दान और तर्पण आदि का कार्य करके पूर्वजों को तृप्त करने और जाने अनजाने में किये गये पापों से मुक्ति पाने के शुभ अवसर का लाभ उठाना उत्तम फ़लदायी रहेगा।
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कन्या -
पावन पर्व कुम्भ के दौरान यूं तो सभी दिन उत्तम हैं परन्तु कन्या राशि के जातकों के लिये 11 मार्च और 12 अप्रैल के दिन बहुत ही खास और पुण्य देने वाला दिन है।
यदि आपके जीवन में शरीर , धन-सम्पत्ति, शिक्षा और रोजगार को लेकर किसी भी तरह की समस्या चल रही है तो आप इस दौरान गंगा स्नान के साथ ज्योतिषीय उपाय करके लाभ उठा सकते हैं ।
यहां तक कि पित्रों की शान्ति के लिये जप दान और तर्पण आदि कार्य करना भी शुभ रहेगा ।
तुला -
पावन पर्व कुम्भ के दौरान 14 और 27 अप्रैल के दिन गंगा स्नान करना आपको सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाने में सहायक सिध्द होगा।
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वृश्चिक -
आपके लिये 12 अप्रैल के दिन गंगा स्नान करके जन्म कुण्डली सम्बन्धि ग्रहो की शान्ति, काल सर्प, पितृ दोष शान्ति करवा कर लाभ उठा सकते हैं।
धनु -
प्रिय जातक आपकी राशि पर शनि की साढे साती का प्रभाव चल रहा है इसकी वजह से कार्यो के प्रतिकूल परिणाम , प्रेम सम्बन्धों और जीवन साथी के साथ विचारों में उतार-चढाव, आर्थिक समस्यायें, और शिक्षा में मन ना लगना आदि समस्यायें सम्भव है
अत: आपके पास सुनहरा मौका है कि इस पावन कुम्भ पर्व के दौरान किसी भी दिन या फ़िर आपकी राशि के हिसाब से 14 अप्रैल के दिन गंगा स्नान करके पूजा-पाठ, दानार्चन , जप आदि करना बहुत शुभ रहेगा।
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मकर -
यूं तो पावन पर्व कुम्भ के दौरान किसी भी दिन स्नान किया जा सकता है परन्तु आपकी राशि शनि की साढे साती का प्रभाव चल रहा है इसकी वजह से कार्यों जिन भी परेशानियों का सामना आपको करना पड रहा है
उसके निवारण के लिये 11 मार्च, 12 अप्रैल और 27 अप्रैल के दिन जन्म कुण्डली से सम्बन्धित किसी भी प्रकार के दोष , ग्रह नक्षत्र शान्ति और पितृ कार्यों के लिये बहुत ही शुभ और उत्तम है।
इसके अलावा जाने अनजाने मे किये गये पापो से मुक्ति और प्रायश्चित के लिये इन दिनों तीर्थ पर पूजा पाठ और दानार्चन करना शुभ रहेगा।
कुम्भ -
प्रिय जातक आपकी राशि पर भी शनि का प्रभाव है अत: काम-काज में आ रही अडचन, पैसों के लेन-देन, विदेश सम्बन्धि कार्यो में वाधा, कानूनी समस्यायें, शिक्षा, प्रियजन और निजी जीवन में यदि किसी भी तरह की परेशानी महसूस हो रही हो
तो इस कुम्भ पर्व के दौरान आपके पास सुनहरा मौका है कि किसी भी दिन या आपकी राशि के अनुसार 14 और 27 अप्रैल के दिन जन्म कुण्डली सम्बन्धि सभी दोषों की शान्ति के अलावा पूजा -पाठ, दानार्चन कर सकते हैं।
साथ ही मोक्ष प्राप्ति और जाने अनजाने में किये गये पापों से मुक्ति पाने के लिये भी आपके पास ये स्वर्णिम अवसर है।
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मीन -
वैसे तो कुम्भ पर्व के दौरान किसी भी दिन या फ़िर आपकी राशि के अनुसार 12 अप्रैल के दिन जीवन में आ रही
परेशानियों जैसे स्वास्थ्य , धन , कुटुम्ब , सम्पत्ति सन्तान, प्रेम प्रसंग और नौकरी-व्यवसाय को लेकर जन्म कुण्डली में जो भी दोष याने कि गुरु चाण्डाल योग , ग्रहण दोष, काल सर्प दोष, पितृ दोष आदि की शान्ति की जा सकती है।
मोक्ष प्राप्ति और जाने अनजाने में किये पापों से मुक्ति पाने के लिये भी आपके पास ये सुनहरा अवसर है।
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