क्या होती है “प्राण प्रतिष्ठा” और कैसे की जाती है?

प्राण प्रतिष्ठा

आज हम इस ब्लोग के माध्यम से संक्षेप में “प्राण प्रतिष्ठा” के बारे में बताने जा रहे हैं कि आखिर “प्राण प्रतिष्ठा” क्या होती है और यह क्यूं आवश्यक है ? साथ ही यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि क्या किसी मूर्ति की “प्राण प्रतिष्ठा” के बिना पूजा करनी चाहिये या नहीं और घर में रखी मूर्तियों की कैसे “प्राण प्रतिष्ठा” की जाती है । हिन्दू धर्म में मूर्ति पूजा का विधान बताया गया है । हम आपको बताते चलें कि भगवान की पूजा करने के दो तरीके हैं , पहला ये कि जो लोग मूर्ति पूजा करते हैं उसे साकार पूजा कहते हैं अर्थात किसी आकार की पूजा करना साकार पूजा कहलाता है, इसके अन्तर्गत हम मूर्ति , प्रतिमा , विग्रह या किसी फ़ोटो की पूजा करते हैं और ये पूजा किसी खास मन्दिर या स्थल पर की जाती है । दूसरा है निराकार पूजा । इस पूजा के अन्तर्गत कहीं पर भी मन में उस देवता या आराध्य का ध्यान करके पूजा अर्चना की जाती है । अब बात करते हैं है कि “प्राण प्रतिष्ठा”  क्यूं आवश्यक है ? शास्त्रों में बताया गया है कि जब भी किसी विग्रह अर्थात मूर्ति की पूजा की जाती है तो उसकी “प्राण प्रतिष्ठा” के बिना पूजा निरर्थक होती है ।

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“प्राण प्रतिष्ठा” दो प्रकर से की जाती है पहला उन मूर्तियों की जिसे हम घर में रखते हैं और दूसरा जिन मूर्तियों को मन्दिर में रखा जाता है । साधारण शब्दों में किसी विग्रह में प्राण डालने की प्रक्रिया या जीवन शक्ति की स्थापना करने को “प्राण प्रतिष्ठा” कहते हैं । अब समझने की बात ये है कि घर में हम साफ़ सफ़ाई करते समय मूर्तियों को हटाकर साफ़ सफ़ाई करते हैं या फ़िर कई बार मन्दिर को एक जगह से दिइसए जगह रख देते हैं । अत: जिस स्थिति में हम मूर्तियों को हिलाते डुलाते है उन मूर्तियों के लिये नियम है कि उनका आकार बारह अंगुल से ज्यादा नहीं होनी चाहिये । वे मूर्तियां चलायमान होने के कारण उनकी जो “प्राण प्रतिष्ठा” की जाती है उसे चल प्रतिष्ठा कहते हैं । दूसरा वे मूर्तियां जिनके लिये आकार की कोई निश्चित सीमा नहीं होती और उन्हें एक जगह स्थिर कर दिया जाता है । स्थिर की जाने वाली मूर्तियों की जो “प्राण प्रतिष्ठा” की जाती है उसे अचल प्रतिष्ठा कहा जाता है । ये “प्राण प्रतिष्ठा” किसी मूर्ति की की जाती है जिसे मन्दिर या खास स्थल पर स्थापित किया जाता है । घर में की जाने वाली चल “प्राण प्रतिष्ठा” के लिये बहुत बडे अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं होती लेकिन मन्दिर में की जाने वाली अचल “प्राण प्रतिष्ठा” के लिये बहुर सी चीजों जैसे विशेष मुहुर्त के अलावा विधि विधान और अनुष्ठान की आवश्यकता होती है । अचल “प्राण प्रतिष्ठा” के लिये काफ़ी समय चाहिये होता है क्योंकि इसमें मूर्ति में प्राण डालने के लिये विधि विधान के अलावा विशिष्ट सामग्री और कर्मकाण्ड विशेषज्ञ अर्थात पौरोहित्य के जानकार की आवश्यकता होती है ।

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“प्राण प्रतिष्ठा” करने के बाद कोई भी मूर्ति पूजा योग्य हो जाती है । मूर्ति बनने से पहले कोई भी पत्थर या धातु अलग आकार में होती है और आकार में आने के लिये बहुत सी प्रक्रिया से गुजरती है । अत: मूर्ति निर्माण हो जाने के बाद उससे नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और प्राण या जीवन शक्ति डालने के लिये पहले वभिन्न प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों , दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल आदि चीजों से स्नान कराया जाता है । 22 जनवरी को अयोध्या धाम में स्थापित किये जाने वाले श्री राम भगवान के विग्रह स्वरूप की भी विधिवत अनुष्ठान के द्वारा अचल “प्राण प्रतिष्ठा” की जायेगी । जिसमें पहले कलश शोभा यात्रा के बाद विधिवत अनुष्ठान करके जलाधिवास, अन्नाधिवास, फलाधिवास, घृताधिवास, शय्याधिवास आदि प्रक्रिया के बाद गर्भ गृह में स्थापित कर सुन्दर वस्त्र और आभूषण पहनाने के बाद उनकी हर प्रहर की पूजा का विधान किसी योग्य वैदिक ब्राह्मण को सौंप दी जायेगी । तदुपरान्त आम जनमानस के लिये दर्शन , पूजा पाठ के लिये मन्दिर के कपाट खोल दिया जायेगा और मन्दिर के खुलने और बन्द होने का समय निर्धारित कर दिया जायेगा ।

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