किसी भी जातक की जन्म कुण्डली में मंगल का मजबूत होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि मंगल पराक्रम का कारक ग्रह होता है । जन्मकुण्डली में मंगल मेष और वृश्चिक दो राशि का स्वामी होता है। मंगल की मूल त्रिकोण राशि मेष है और तमो गुण प्रधान है जबकि जाति क्षत्रिय , रंग लाल और अग्नि तत्व कारक है । मंगल को ऊर्जा के साथ भूमि, शक्ति, साहस और शौर्य के लिये भी जाना जाता है। मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी मंगल ग्रह होता है।
जन्म कुण्डली में मंगल ग्रह जब प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में बैठा हो तो यह स्थिति कुंडली में मांगलिक दोष का निर्माण करती है । क्योंकि मांगलिक दोष मनुष्य जीवन के दांपत्य जीवन को प्रभावित करता है, इसलिये इसे शुभ नहीं माना जाता । मंगल दोष के कारण जातक को वैवाहिक सुख विलम्ब से मिलता है या फ़िर कम मिलता है । सप्तम भाव में मंगल की स्थिति सबसे खराब मानी जाती है ।
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उच्च या बलवान मंगल का फ़ल:
मंगल ग्रह मकर राशि में निश्चित अंश पर उच्च के होते हैं और जब ये स्वग्रही होकर केन्द्र में स्थित हों तो पंच महापुरुष योगों में से एक रुचक योग बनाता है जिसे ज्योतिष में बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। किसी भी जातक की कुण्डली में बलवान मंगल जातक को स्वभाव से निडर और साहसी तो बनाता ही है साथ में हर क्षेत्र में विजय भी दिलाता है । जातक के चेहरे में सुंदरता एवं तेज़ होता है और सदैव युवा दिखाई देता है।
बलवान मंगल जातक को पराक्रमी होने के साथ निडर और साहसी भी बनाता है। ऐसे जातक किसी प्रकार के दबाव में रहकर कार्य नहीं कर सकते और उन्हें जल्दी क्रोध भी आ जाता है । सेना, पुलिस, इंजीनियरिंग क्षेत्र में इनकी अच्छी रुचि देखी जाती है । विपरीत परिस्थितियों में भी ये जातक कभी नहीं घबराते और हर प्रकार की चुनौतियों को सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं ।
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कमजोर मंगल के प्रभाव:
कर्क राशि में मंगल नीच राशि का होता है और इसके अलावा कुण्डली में मंगल पीडित हो या मांगलिक दोष युक्त हो तो बडी परेशानियों गुजरना पडता है। वैवाहिक सुख में कमी तो आती ही है साथ ही विवाह में विलम्ब भी झेलना पडता है । यदि जातक की जन्म कुंडली में मंगल अशुभ स्थिति में बैठा हो तो जातक को अनेक क्षेत्रों में कठिनाइयों और परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है।
जातक के अन्दर डर की भावना होती है और चेहरे से सदा उदास दिखाई देता है। छोटी-२ बातों पर चिढ जाता है। रक्त संबंधी बीमारियां कुष्ठ रोग, ख़ुजली और रक्तचाप के अलावा फोड़े-फुंसी होने की सम्भावना बनी रहती है । साथ ही दुर्घटना का भय , पारिवारिक जीवन में भी समस्याएं , विरोधियों की अधिकता, कर्ज और ज़मीन संबंधी विवादों की समस्याओं से भी जूझना पडता है। इसलिये ज्योतिषी पीडित मंगल या मंगल दोष की शान्ति करने की सलाह देते हैं ।
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मंगल ग्रह की शान्ति और बलवान करने के उपाय:
ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह की शान्ति के लिये निश्चित संख्या या यथासामर्थ्य मन्त्र जाप , दान, स्नान, हवन, जड़ी-बूटी धारण, रत्न धारण करना, औषधि स्नान, व्रत, यन्त्र स्थापना और पूजन आदि का सुझाव दिया गया है ।
• मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करें।
• मंगलवार को बन्दरों को गुड, चना और केले दें ।
• मंगल यन्त्र की स्थापना करें ।
• नित्य सुन्दरकाण्ड का पाठ करें
• मंगल के वैदिक मन्त्र, लौकिक मन्त्र, मंगल गायत्री मन्त्र या बीज मन्त्र का यथाशक्ति जाप करना चाहिये ।
• मूंगा रत्न धारण करना चाहिये ।
• मूंगे की माला धारण करनी चाहिये ।
• मंगलवार के व्रत रखने चाहिये ।
• मसूर, मूंगा, तांबा, लाल बैल, गुड, घी, लाल कनेर, लाल वस्त्र, लाल चन्दन, केशर, कस्तूरी का दान करें
• बिल्व पत्र, लाल पुष्प, हींग, गोदनी, जटामांसी, मौलसिरी, सिगरफ़, मालकंगनी, गंगाजल से मिश्रित जल से स्नान करें ।
सुविधा हेतु मन्त्र:
• मंगल ग्रह का पौराणिक मंत्र:
‘ॐ धरणीगर्भसंभूतं विद्युतकान्तिसमप्रभम।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणमाम्यहम।।’
• वैदिक मन्त्र:
ॐ अग्निमूर्द्धा दिव: ककुत्पति पृथिव्याऽअयम्।
अपां रेतां सि जिन्वति भौमाय नम:।।
• मंगल गायत्री मंत्र: “ॐ अंगारकाय विद्महे शक्ति हस्ताय धीमहि, तन्नो भौमः प्रचोदयात्” ।।
• मंगल ग्रह का तांत्रिक मंत्र: ॐ हूं श्रीं मंगलाय नम:
• बीज मन्त्र: ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
• मंगल का नाम मंत्र: ॐ भौं भौमाय नम:”
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