क्यों है शनि चालीसा बहुत महत्वपूर्ण और किस राशि के जातकों को इसे पढ़ना चाहिए।

शनि-चालीसा

क्यों है शनि चालीसा बहुत महत्वपूर्ण और किस राशि के जातकों को इसे पढ़ना चाहिए।

भारतीय वैदिक ज्योतिष में शनि चालीसा का सम्बन्ध सीधे सीधे शनि ग्रह से जोडा जाता है और वैसे भी शनि ग्रह की दोष, शान्ति या प्रसन्नता के लिये शनि चालीसा का महत्व विशेष माना जाता है।

सबसे पहले हमे शनि ग्रह के गुण धर्म और स्वभाव को जानना होगा । शनि ग्रह गति के मामले में सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं और शनि ग्रह को लेकर लोगों के मन में शत्रुगत धारणा ज्यादातर देखी जाती है,

लेकिन हम आपको बता दें कि शनि ग्रह शत्रु नहीं बल्कि मित्र भी है और इन्हे न्याय का देवता भी कहा जाता है। शनि ग्रह ही एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो कर्मों का फ़ल निश्चित तौर पर प्रदान करते हैं ।

यदि मनुष्य के द्वारा शुभ कर्म किये गये हों या अशुभ कर्म किये गये हों तो शनि ग्रह की दशा के दौरान शुभाशुभ फ़ल से बचा नहीं जा सकता । महादशा में शनि तीस वर्ष की दशा का भोग करते हैं 

और मार्गी और वक्री होने के कारण ये बढ भी सकता है। इसके अलावा शनि की ढय्या और साढे साती से भी मनुष्य को कम से कम एक बार तो अवश्य ही गुजरना होता है।

दशा, अन्तर्दशा, ढय्या और साढे साती के फ़ल:

अब यदि दशा, अन्तर्दशा, ढैय्या और साढे साती के फ़ल की बात की जाय तो जन्म कुण्डली में श्नि ग्रह की शुभाशुभ स्थिति पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। शनि ग्रह मकर और कुम्भ राशि क स्वामी होता है

जो कि तुला राशि में उच्च का और मेष राशि में नीच राशि का होता है इसके अलावा शत्रु-मित्र राशि में उपस्थिति या अस्त अवस्था में भी शनि ग्रह अलग -२ फ़ल प्रदान करता है। ऐसा भी देखा गया है

कि बहुत से ज्योतिषी तो अधिकतर लोगों को उनकी समस्याओं का मूल कारण शनि ग्रह से जोडकर बता देते हैं जो कि  बहुत सही नहीं कहा जा सकता । जैसा कि हमने पहले ब्लोग में बताया था

कि जब शनि ग्रह गोचर में जिस भी राशि में भ्रमण करते है तो उससे पहली और 12वीं राशि साढे साती के प्रभाव में होती है और ऐसा ही ढय्या के बारे में भी हम पूर्व में बता चुके हैं ।

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शनि के शुभ या अशुभ प्रभाव:

जिस भी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शनि मजबूत स्थिति में हो या शुभ भाव का स्वामी हो , शनि ग्रह उसे अपार सुख प्रदान करता है । ऐसा भी कह सकते हैं कि यदि शुभ शनि रंक से राजा बनाने की शक्ति रखता है तो अशुभ शनि की स्थिति दशा आने पर राजा को रंक भी बना देता है।

यही कारण है कि लोगों के मन में शनि ग्रह को लेकर एक प्रकार का भय व्याप्त रहता है। परन्तु जब भी कोई ग्रह कुण्डली में अशुभ स्थिति में हो तो उसका उपाय भी हमारे शात्रों में वर्णित हैं ।

जिस प्रकार वर्षा होने पर हम छाते का सहारा लेते हैं और हम पानी से पूरी तरह तो नहीं भीगते लेकिन उससे हमारा बचाव अवश्य हो जाता है। ऐसा ही उपाय करने से भी शनि ग्रह  के कठोर परिणाम से हम अवश्य अपना बचाव कर लेते हैं ।

हम एक अन्य प्रकार से शनि के प्रभाव को समझने का प्रयास करते हैं जैसे कि  शनि की साढ़े साती तथा ढैय्या उन्हीं लोगों के जीवन में मुसीबतें लेकर आते हैं जिनकी कुंडली में शनि जन्म से ही बुरा असर दे रहे होते हैं

जबकि जिन लोगों कि कुंडली में शनि जन्म से शुभ असर दे रहे होते हैं, उन लोगों के जीवन में शनि की साढ़े सती तथा ढैय्या का बुरा असर कम देखने को मिलता है ।

किसी भी निर्णय पर जाने से पहले किसी व्यक्ति विशेष के लिए शनि ग्रह उस व्यक्ति की जन्म कुंडली में कैसा असर दे रहे हैं, किस स्थिति में है और इस ग्रह के शुभ प्रभावों का किस स्तर तक उपाय किये जा सकते हैं ये देखना भी जरूरी है ।

किस राशि को शनि ज्यादा लाभ देते हैं:

मेष राशि में शनि नीच के होते हैं और तुला राशि में उच्च के होते है, इसके अलावा मकर और कुम्भ राशि के स्वामी शनि हैं तो इन चारों राशियों को सदैव शनि चालीसा का पाठा लाभ देगा और प्रतिकूल समय में अनुकूल फ़ल के अलावा नकारात्मक प्रभाव से बचाने में भी मदद करता है ।

यूं तो हर शनिवार को शनि चालीसा का पाठ शनि मन्दिर में किया जाना चाहिये लेकिन दैनिक रूप में घर पर भी चालीसा का पाठ करने में कोई बुराई नहीं है।

डॉ. वेदप्रकाश ध्यानी

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शनि चालीसा दोहा:

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

शनि चालीसा चौपाई:

जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा तन श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छवि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमकै।
हिये माल मुक्तन मणि दमकै॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल विच करैं अरिहिं संहारा॥

पिंगल कृष्णो छाया नन्दन।
यम कोणस्थ रौद्र दुःख भंजन॥
सौरि मन्द शनी दश नामा।
भानु पुत्रा पूजहिं सब कामा॥
जापर प्रभु प्रसन्न हों जाहीं।
रंकहु राउ करें क्षण माहीं॥
पर्वतहूं तृण होई निहारत।
मात जानकी गई चुराई॥
लषणहि शक्ति बिकल करि डारा।
मचि गयो दल में हाहाकारा॥

दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग वीर को डंका॥
नृप विक्रम पर जब पगु धारा।
चित्रा मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखाओ।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
वैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी मीन कूद गई पानी॥

श्री शकंरहि गहो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनि बिलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरि सुत सीसा॥
पाण्डव पर ह्नै दशा तुम्हारी।
बची द्रोपदी होति उघारी॥
कौरव की भी गति मति मारी।
युद्ध महाभारत करि डारी॥

रवि कहं मुख महं धरि तत्काला।
लेकर कूदि पर्यो पाताला॥
शेष देव लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
गज दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पत्ति उपजावैं॥
गर्दभहानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट करि डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै।।
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहिं चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लोह चांदी अरु ताम्बा॥

लोह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्रा नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पंडित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शान्ति कराई॥

पीपल जल शनि-दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥

शनि चालीसा दोहा:

पाठ शनिश्चर देव को, की हों ‘भक्त’ तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

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