
हमारे हिंदू धर्म में गर्भधारण संस्कार से लेकर और मृत्यु तक सोलह संस्कार का विधान बताया गया है । और मृत्यु के बाद भी पवित्र आत्मा की सन्तुष्टि के लिये मृतक के सगे संबंधी खासकर उनकी संतान कुछ विशेष कर्म करते हैं और श्राद्ध कर्म उन्हीं में से एक है। कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष भी कहा जाता है हर महीने आने वाली अमावस्या तिथि को पितरों के निमित्त श्राद्ध , दानादि किया जा सकता है । भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय पितरों को समर्पित है और इसे श्राद्ध पक्ष कहा जाता है । अपने पूज्य पूर्वज़ों के प्रति श्रद्धा से किया गया पिण्ड दानादि कर्म श्राद्ध कहलाता है ।
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पितृ पक्ष का महत्व:
ज्योतिषीशास्त्र से भी पितृ पक्ष का खास सम्बन्ध है और पितरों से सम्बन्धित दोष को ज्योतिषीय भाषा में पितृ दोष के नाम से जाना जाता है । यह कालसर्प दोष और ग्रहण दोष की तरह जीवन की सम्स्याओं को बढाता है और प्रगति में बाधक बनता है । अत: इस दृष्टि से भी पितरों की सन्तुष्टि करना काफी अहम हो जाता है । देखा गया है कि यदि किसी को सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही हो या संतान सुख मिलने में दिक्कत या परेशानियां आ रही हो , या आर्थिक नुकशान के साथ भाग्य का साथ नहीं मिल पा रहा हो तो इसका कारण पितृदोष भी हो सकता है । परन्तु इसका आंकलन कोई अच्छा ज्योतिषी ही कर सकता है। एक नजर में कोई भी ज्योतिषी इस तरह की परेशानियों के होने पर कुण्डली में पितृ दोष होने की संभावनाएं व्यक्त करते हैं। इसलिये जिन लोगों की कुण्डली में पितृदोष होता है उन्हें इस दोष की शान्ति के लिये श्राध्द पक्ष में श्राध्द पिण्ड दानादि करना चाहिये । ऐसा भी कह सकते हैं कि पितृ पक्ष वह समय होता है जब हमारे पूर्वज धरती पर होते हैं और हम श्राद्ध कर्म करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ।
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अपने पूर्वज़ों का श्राद्ध किस दिन करना चाहिये:
जैसा कि हमने कहा कि हर मास अमावस्या आती है परन्तु इस खास पितृपक्ष में अन्य सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं और केवल पित्रों के निमित्त पिण्डदानादि कर्म किया जाता है या यूं कहें कि ये पक्ष पित्रों को समर्पित है । हमारे जो भी पितृ परलोक गमन कर चुके हैं उनकी पुण्य तिथि जो भी हो अर्थात जिस तिथि को उन्होने अपने प्राण त्यागे हैं उसी तिथि को हमेशा पितृ पक्ष के दिन उनका श्राध्द कर्म किय जाता है। यदि किसी कारणवश देहावसान की तिथि ज्ञात न हो तो सर्व पितृ अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है इसीलिये इसे सर्वपितृ अमावस्या भी कहा जाता है। समय से पहले जिन परिजनों की किसी दुर्घटना, आत्महत्या या किसी शस्त्र द्वारा अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।
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श्राद्ध 2023(Pitru Paksha 2023) विधि:
प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर शुध्द वस्त्र धारण करने चाहिये । पिण्ड दानादि की आवश्यक सामग्री दूध, जौ, तिल, चावल, कुशा और भोजनादि तैयार किया जाना चाहिये । फ़िर पित्रों का ध्यान करते हुये तर्पण और पिण्डदान करना चाहिये । जो भी भोजन उनके निमित्त बनाया गया हो वो चढाना चाहिये । फ़िर कौआ, गाय और चींटियों को भी कुछ न कुछ खिलाना चाहिये । फ़िर ब्राह्मण को श्रध्दा से भोजन करवा कर स्वयं भोजन करना चाहिये ।
इस बार पितृ पक्ष में श्राध्द 2023(Pitru Paksha 2023) की तिथियां इस प्रकार होंगी:
श्राध्द 29 सितंबर 2023 से प्रारम्भ होकर 14 अक्टूवर 2023 को समाप्त होंगे।
★ पूर्णिमा / प्रतिपदा का श्राद्ध एवं तर्पण 29 सितंबर
★ द्वितीय का श्राद्ध एवं तर्पण 30 सितंबर
★ तृतीया का श्राद्ध एवं तर्पण 1 अक्टूवर
★ चतुर्थी का श्राद्ध एवं तर्पण 2 अक्टूवर
★ पंचमी का श्राद्ध एवं तर्पण 3 अक्टूवर
षष्ठी का श्राद्ध एवं तर्पण 4 अक्टूवर
★ सप्तमी श्राद्ध एवं तर्पण 5 अक्टूवर
★अष्टमी का श्राद्ध एवं तर्पण 6 अक्टूवर
★ नवमी का श्राद्ध एवं तर्पण 7 अक्टूवर
★ दशमी का श्राद्ध एवं तर्पण 8 अक्टूवर
★ एकादशी का श्राद्ध तर्पण 9 अक्टूवर
10 अक्टूवर (कोई श्राध्द नहीं)
★ द्वादशी का श्राद्ध एवं तर्पण 11 अक्टूवर
★ त्रयोदशी का श्राद्ध एवं तर्पण 12 अक्टूवर
★ चतुर्दशी का श्राद्ध एवं तर्पण 13 अक्टूवर
★ अमावस्या का श्राद्ध एवं तर्पण 14 अक्टूवर
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