
मां दुर्गा हिन्दुओं की आराध्य देवी हैं और पूरे भारत वर्ष में मां दुर्गा की अलग-अलग विधि से पूजा अर्चना की जाती है । मां हमें जन्म देती है और मां के बिना संसार की कल्पना अधूरी है। यूं तो हिन्दू धर्म में रोजाना मां दुर्गा की पूजा और श्री दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है परन्तु पूरे वर्ष में मां दुर्गा पूजा का पर्व नवरात्रि के रूप में चार बार मनाया जाता है । जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि होती है और दो चैत्र तथा शारदीय नवरात्रि के रूप में मनाई जाती है ।
मां दुर्गा को शक्ति के रूप में पूजा जाता है और मां दुर्गा ने समय-समय पर भक्तों के कल्याण के लिये अलग-अलग रूप धारण किया । इन्हीं रूपों की पूजा नवरात्रि में भक्तगण करते हैं । नवरात्रि को हिन्दुओं का पावन और पवित्र पर्व भी कहा जाता है । खासकर इस दौरान व्रत आदि रखकर मां दुर्गा का भक्ति भाव और श्रध्दा से पूजन करते है और दुर्गा चालीसा के अलावा दुर्गा सप्तसती का पाठ करते हैं।
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स्वयं के कल्याण और जन कल्याण की भावना से भी दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है । दुर्गा चालीसा का जब पाठ किया जाता है तो उसमें मां दुर्गा भगवती से प्रार्थना और उनके गुणों का बखान किया गया है। मां भगवती सुख देकर दुख को हरने वाली है। उनके स्वरूप के बारे में बताया गया है कि उनकी उजियारी तीनों लोकों में फ़ैली हुई है। अन्न की दात्री हैं और प्रलय का भी हरण करने की शक्ति उनके अन्दर है।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी उनका ध्यान करते हैं और वे दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में भक्तों का कल्याण करती हैं। उन्होंने शुम्भ, निशुम्भ,रक्तबीज और महिषासुर जैसे दानवों को मारकर सबको सुरक्षा और कल्याण का आशीर्वाद दिया । जो भी प्रेम पूर्वक उनका गुणगान करता है उनसे अपने कष्टों के लिए बिनती करता है, उसके निकट कभी भी दु:ख दरिद्र नहीं आता ।
श्री दुर्गा चालीसा पाठ करने की साधारण विधि और समय :
अपने घर के मन्दिर में किसी भी शुभदिन में मां भगवती की मूर्ति या फ़ोटो स्थापित करें और मनोकामना के लिए संकल्प लेकर मां भगवती का अपनी श्रध्दानुसार पूजन, श्रंगार और भोग लगाकर दुर्गा चालीसा का पाठ नित्य करें । या अपने घर के आस-पास जहां भी मां भगवती दुर्गा की मूर्ति स्थापित हो वहां जाकर धूप-दीप दिखाकर उनके आगे भाव पूर्वक बैठे और अपनी मनोकामना के लिए मन में संकल्प लें और श्रध्दानुसार नित्य पाठ करने से भी माता रानी प्रसन्न होती है और शीघ्र मनोकामना पूर्ण करती हैं । अपनी सुविधानुसार सुबह या शाम किसी भी समय भक्ति पूर्वक पाठ किया जा सकता है।
श्री दुर्गा चालीसा के लाभ:
- मां दुर्गा जी की कृपा शीघ्र बरसती है ।
- नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
- सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
- भावनात्मक और आध्यात्मिक जागृति प्राप्त होती है।
- आर्थिक उन्नति होती है।
- कर्ज से मुक्ति मिलती है।
- शत्रु पर विजय प्राप्त होती है।
- ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- शारीरिक और मानसिक परेशानियां दूर होती हैं ।
- घर में पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होकर सकारात्मक ऊर्जा आती है।
- नौकरी-व्यापार में वृध्दि होती है।
- विवाह और सन्तान सुख मिलता है।
श्री दुर्गा चालीसा:
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
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निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
डॉ वेदप्रकाश ध्यानी
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