क्यों जरूरी है श्राद्ध और हिन्दू धर्म में उसका महत्व

श्राध्द् क्या हैं ?

अपने पूज्य पितरों के निमित्त श्रध्दा से किया गया तर्पण, दान आदि को श्राध्द कहा जाता है। किसी भी मृत व्यक्ति का श्राध्द करने के लिये निश्चित तिथि होती है। इसके लिये उस व्यक्ति ने जिस तिथि को अपने शरीर का त्याग किया है उस तिथि को ग्रहण किया जाता है। और हर साल श्राध्द पक्ष में उसी तिथि को ग्रहण किया जाता है। श्रध्दा के साथ सुन्दर स्वादिष्ट भोजन आदि बनाकर उस आत्मा की तृप्ति हेतु तर्पण, दान अर्पण किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि उस दिन आत्मा अपने परिवारी जन और चाहने वालों से कुछ पाने की उम्मीद करती है । और जब हम उनके निमित्त कुछ दान करते हैं तो उसे पाकर आत्मा सन्तुष्ट होती है। और हमें अपना आशीर्वाद प्रदान करती है।

श्राध्द कब किया जाता है ?

यूं तो हर माह की अमावस्या को श्राध्द किया जाता है परन्तु साल भर में एक विशेष समयावधि को श्राध्द पक्ष माना जाता है और ये भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिंमा से आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक गिना जाता है। पूर्णिमा से अमावस्या तक जिस भी तिथि को किसी ने देह त्याग किया हो उस तिथि को ग्रहण करके उस दिन उनके निमित्त तर्पण और भोजन दानादि अर्पण किया जाना चाहिये ।

श्राध्द क्यों किया जाता है ?

शास्त्रों में कहा गया है कि मनुष्य मृत्यु लोग से देह त्याग के बाद काफ़ी समय तक उसकी आत्मा उसके कर्मों के अनुसार भटकती रहती है और इस दौरान हम उनके लिये जो भी तर्पण भोजन दानादि अर्पण करते हैं उसी पर वे निर्भर रहते हैं । सिर्फ़ हिन्दू धर्म ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों में भी अपने पित्रों के निमित कुछ न कुछ दान करने का विधान है। और ये अपने पूर्वजों के प्रति हमारी सच्ची भावनाओं को दर्शाता है।

श्राध्द करने का अधिकार किसे है ?

श्राध्द करने का अधिकार पुण्य आत्मा के पुत्र या किसी परिजन को है। यदि किसी का पुत्र है तो उसे श्राध्द करना चाहिये। परन्तु आज के युग में पुत्र और पुत्री को बरबर का दर्जा है अत: दोनों को ही अधिकार है कि वे अपने पूर्वजों का श्राध्द कर सकते हैं। जिनकी सन्तान न हो उनके लिये परिवार का कोई अन्य सदस्य जो श्राध्द तर्पण करना चाहे वो भी कर सकता है। कई स्थितियों मे ब्राहण को भी श्राध्द पिण्डदानादि करने का अधिकार प्रदान है।

श्राध्द की तिथि मालूम न होने पर श्राध्द कब किया जाना चाहिये ?

सर्व प्रथम तो यही है कि जिस दिन शरीर का त्याग किया हो उसी तिथि को हर बार स्वीकार किया जाना चाहिये। यदि भूल वश पुण्य तिथि याद ना हो तो सर्व पितृ अमावस को श्रध्दा से उनका श्राध्द किया जाना चाहिये । ऐसी मान्यता रही है कि अमावश के दिन श्राध्द करने से सभी पितृ सन्तुष्ट हो जाते है। इसी लिये हर महीने की अमावस्या को पितृ अमावस्या कहा जाता है। और कई लोग हर महीने की अमावस्या को अपने पित्रों के निमित्त घर पर ब्राह्मण को बुलाकर या घर के नजदीक किसी मन्दिर में भी अपने पित्रो के निमित्त दान करते हैं ।

श्राध्द कैसे किया जाता है ?

श्राध्द वाले दिन प्रात: काल स्नान आदि करके स्वादिष्ट भोजन बनाकर ब्राह्मण को अपने घर बुलायें और कच्चे दूध, कुशा ,जौ और तिल से तर्पणादि करें । ऐसा सम्भव ना होने पर पूजा के स्थल पर पित्रों की फ़ोटो रखकर उन्हें सफ़ेद पुष्पों की माला पहनायें और श्रध्दा भाव से उनका स्मरण करके बनाये हुये भोजन को उन्हे अर्पण करें। और कुछ सूखा अनाज उनके निमित्त नजदीक के किसी मन्दिर मे ब्राह्मण को दान दें । ऐसा माना जाता है किस इससे भी पित्रों को शान्ति मिलती है।

श्राध्द करने का शुभ समय क्या होता है ?

हिन्दू धर्म ग्रन्थों में वैसे तो दोपहर के समय तर्पण आदि के लिये उपयुक्त माना गया है परन्तु श्रध्दा के अनुसार सूर्य उदय काल में भी किया जा सकता है। या फ़िर अपनी श्रध्दा और सुविधानुसार करने में भी कोई बुराई नहीं है ।

इस बार श्राध्द पक्ष कब शुरु होगा ?

इस बार श्राध्द पक्ष 13 सितम्बर 2019 (शुक्रवार) भाद्रपद शुक्ल पूर्णिंमा से प्रारम्भ होगा

13 सितम्बर (शुक्रवार) पूर्णिमा श्राद्ध

14 सितम्बर (शनिवार) प्रतिपदा श्राद्ध

15 सितम्बर (रविवार) द्वितीया श्राद्ध

17 सितम्बर (मंगलवार) तृतीया श्राद्ध

18 सितम्बर (बुधवार) महा भरणी, चतुर्थी श्राद्ध

19 सितम्बर (बृहस्पतिवार) पञ्चमी श्राद्ध

20 सितम्बर (शुक्रवार) षष्ठी श्राद्ध

21 सितम्बर (शनिवार) सप्तमी श्राद्ध

22 सितम्बर (रविवार) अष्टमी श्राद्ध

23 सितम्बर (सोमवार) नवमी श्राद्ध

24 सितम्बर (मंगलवार) दशमी श्राद्ध

25 सितम्बर (बुधवार) एकादशी श्राद्ध, द्वादशी श्राद्ध

26 सितम्बर (बृहस्पतिवार) मघा श्राद्ध, त्रयोदशी श्राद्ध

27 सितम्बर (शुक्रवार) चतुर्दशी श्राद्ध

28 सितम्बर (शनिवार) सर्वपितृ अमावस्या

विशेष :- श्राध्द पक्ष में पित्रों की आत्मा की शान्ति के अलावा जन्म कुण्डली में उपस्थित पितृ दोष की शान्ति करने के लिये भी सर्वोत्तम समय माना जाता है। स्टार्सटेल ऑन लाइन सुविधा प्रदान करता है । आप अपनी जन्म कुण्डली में स्थित पितृ दोष की शान्ति घर बैठे भी करवा सकते हैं । हमारे विद्वान पण्डित जी विधि विधान से जन्म कुण्डली के दोषों की शान्ति करवाते हैं । इसके लिये आप हमारे फ़ोन नम्बर – 85 8800 9900 पर फ़ोन करके पूजा बुक करवा सकते हैं 

नोट :- स्टार्सटेल के सौजन्य से पितृ पक्ष में पितृ दोष की शान्ति 28 सितम्बर (शनिवार) सर्वपितृ अमावस्या के अवसर पर देव नगरी हरिद्वार में मां गंगा के पवित्र तट पर श्रेष्ठ वैदिक विद्वानों के द्वारा करने की योजना है । यदि आप भी अपने पितृ दोष की शान्ति ऑन लाइन घर बैठे करवाना चाहते हैं तो ऑनलाइन पूजा बुक करें 

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

CommentLuv badge