
क्या होता है नाडी दोष और वैवाहिक जीवन को कैसे प्रभावित कर सकता है ?
जब भी विवाह योग्य युवक-युवती की जन्म कुण्डली का मिलान किया जाता है तो मिलान के समय अष्ट्कूट का विचार महत्वपूर्ण होता है। अष्टमहाकूट के अन्तर्गत वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाडी का विचार किया जाता है और प्रत्येक के लिये निश्चित अंक निर्धारित किये गये हैं जिनका योग 36 होता है। सर्वोत्तम 8 अंक नाडी के लिये निर्धारित हैं । एक अच्छे ज्योतिषी को ग्रह मैत्रि , मंगल दोष आदि की तरह ही नाडी का कुण्डली मिलान में विशेष ध्यान रखना होता है, क्योंकि नाडी विचार वैवाहिक दम्पत्ति के जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर सकता है ।
आइये नाडी दोष को विस्तार से समझते हैं:
ज्योतिष में नाडी तीन प्रकार की बतायी गई है जो कि 27 नक्षत्रों के आधार पर तय की गई है ।
1- आदि नाडी :- आदि नाडी के अन्तर्गत अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तराफ़ाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठा, मूल शतभिषा और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र आते हैं ।
2- मध्य नाडी :- भरणी, मृगशिरा, पुष्य़, पूर्वा फ़ाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढा, धनिष्ठा और उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र आते हैं।
3- अन्त्य नाडी :- कृतिका, रोहिणी, आश्लेषा, नघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढा, श्रवण और रेवती नक्षत्र आते हैं ।
जब भी कुण्डली मिलान करते हैं तो वर और कन्या की नाडी एक नहीं होनी चाहिये । ऐसा मिला शुभ नहीं माना जाता और विवाहोपरान्त जीवन में बहुत सी परेशानियों से गुजरना पडता है। ज्योतिष शास्त्र में ऐसा माना जाता है कि यदि वर और कन्या की एक ही नाडी हो तो उन्हें नाडी अनुसार अलग-२ प्रकार का कष्ट झेलना पडता है । जैसे कि यदि यदि दोनों की आदि नाडी हो तो विवाह के पश्चात या तो उन्हें वियोग का दु:ख झेलना पडता है या विवाह का सम्पूर्ण सुख प्राप्त नहीं हो पाता ।
दूसरा यदि उन दोनों की मध्य नाडी हो तो जीवन में हानि उठानी पडती है और यदि दोनो की अन्त्य नाडी हो तो वैधव्य जीवन तक जीना पड सकता है । अत: विद्वान ज्योतिषाचार्यों को कुण्डली मिलान करते समय इस चीज का गहनता से विचार करना चाहिये। भले ही कुण्डली अन्य प्रकार से ठीक मिल रही हो लेकिन नाडी दोष को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिये।
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नाडी दोष का परिहार:
ज्योतिष शास्त्र में नाडी दोष के परिहार स्वरूप कुछ सुझाव भी दिये गये हैं ।
- दोनों की राशि एक हो परन्तु नक्षत्र अलग-2 होना चाहिये ।
- दोनों का नक्षत्र एक हो परन्तु राशियां अलग-2 होनी चाहिये ।
- यदि नक्षत्र एक ही हो तो नक्षत्र का चरण अलग-2 होना चाहिये ।
- ज्योतिष चिन्तामणि ग्रन्थ के अनुसार रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, ज्येष्ठा, कृतिका, पुष्य, श्रवण, रेवती, और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में जन्मे वर कन्या के लिये नाडी दोष विचार आवश्यक नहीं ।
- यदि नाडी दोष का परिहार हो रहा हो तो कुल गुणों में आधे गुण और जुड जाते हैं ।
दूसरे चरण में शनि जन्मकालीन चंद्रमा के ऊपर से होकर मानसिक तनाव और कष्ट देने वाला होता है। शनि के तीसरे चरण के दौरान पहले दो चरणों के दौरान लिया गया सब कुछ वापस कर देता है और आशीर्वाद देता है।
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उपाय के तौर पर अनुष्ठान (उपाय):
यदि विवाह हो चुका हो और बाद में ये पता लगे कि कुण्डली में नाडी दोष परेशानियों का करण बना हुआ है या विवाह करना परिस्थितिवश नितान्त आवश्यक हो तो निम्न उपाय शास्त्रसम्मत किये जा सकते हैं ।
- महामृत्युञ्जय मन्त्र का यथाशक्ति जाप किया जाना चाहिये ।
- गौ दान किया जाना चाहिये ।
- वस्त्र दान किया जाना चाहिये ।
- अनाज दान किया जाना चाहिये ।
- घृत दान किया जाना चाहिये ।
- धातु (सुवर्ण, चान्दी,कांसा) दान किया जाना चाहिये ।
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नोट :- प्रथम प्रयास तो यही किया जाना चाहिये कि विवाह पूर्व किसी विद्वान ज्योतिषी से कुण्डली मिलान भलि भांति कराया जाना चाहिये और आवश्यक उपाय भी विवाह्पूर्व कर लिये जाय तो उत्तम होगा लेकिन यदि ऐसा किसी करणवश हो जाता है तो भी वैदिक विद्वानों की रेखदेख में ही पूजा-पाठ, अनुष्ठानादि करने की सलाह है।
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डॉ. वेदप्रकाश ध्यानी
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