शैव धर्म और वैष्णव धर्म में अंतर?

शैव धर्म

🛕 वैष्णव , शैव, शाक्त ,गाणपत्य और सौर ये पांच तरह के सनातनी हैं जो कि क्रमशः विष्णु , शिव , शक्ति, गणपति और सूर्य के उपासक होते हैं ये अपने उपास्य को ईश्वर तथा अन्य चारों को देवता मानकर उनकी आराधना करते हैं ।

अतः शैव वो हैं तो शिव को ईश्वर मानते हैं और अन्य को देवता मानते हैं । वैष्णव वो हैं जो विष्णु को ईश्वर और अन्य समस्त को देवता मानते हैं ।

शैव मत वाले लोग भगवान शिवजी को अधिक मानते थे. वैष्णव मत वाले भगवान विष्णु को अधिक मानते थे

वर्तमान में भगवान ब्रह्मा को जीवों/मनुष्यों आदि की सृष्टि का जनक,भगवान विष्णु को सृष्टि का पालक तथा भगवान शिव को सृष्टि का संहारक(प्राणियों को उनके कर्मानुसार अगले जन्म में भेजनेवाला) माना जाता है

तीनों भगवानों को उनके कर्तव्यानुसार बराबर आदर दिया जाता है तथा उनमें बराबर श्रद्धा रखी जाती है 🛕

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वैष्णव का क्या मतलब होता है?

🛕वैष्णव का शाब्दिक अर्थ ‘भगवान विष्णु का उपासक’ होता है।

वैष्णव सम्प्रदाय, भगवान विष्णु को ईश्वर मानने वालों का सम्प्रदाय है। वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है।

इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें, ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज- इन 6: गुणों से सम्पन्न होने के कारण भगवान या ‘भगवत’ कहा गया है

और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं। वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं, जैसे: बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय।  

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शैव धर्म

🛕 दक्षिण भारत में शैव धर्म का प्रचार नयनार या आडियार संतों द्वारा किया गया, ये संस्था में 63 थे। इनके श्लोकों के संग्रह को तिरुमुडै कहा जाता है। जिसका संकलन नम्बि – अण्डाल – नम्बि ने किया।

लिंग पूजा का प्रथम स्पष्ट उल्लेख मत्स्य पुराण में हुआ है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी लिंगोपासना का उल्लेख है

शैव सम्प्रदायों का प्रथम उल्लेख पतंजलि के महाभाष्य में शिव भागवत नाम से हुआ।

कश्मीरी शैव शुद्ध रूप से दार्शनिक तथा ज्ञानमार्गी था । इसके कापालिकों के घृणित क्रिया कलापों की निन्दा की गई है। वसुगुप्त इसके संस्थापक थे। शिव को उन्होंने अद्वैत कहा है। 🛕

वामन पुराण में शैव सम्प्रदाय की संख्या चार बतायी गई है जो निम्न लिखित हैं-

🛕शैव ,पाशुपत, काला मुख, कापालिक🛕

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शैव सम्प्रदाय-

🛕 इस सम्प्रदाय के अनुसार कर्त्ता शिव हैं, कारण शक्ति तथा उपादान बिंदु हैं।

इस मत के चार पाद या पाश (बंधन) हैं- विद्या, क्रिया, यौग तथा चर्या

तीन पदार्थ हैं – पति, पशु, पाश।🛕

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पाशुपत सम्प्रदाय-

🛕 यह सम्प्रदाय शैव मत का सबसे पुराना सम्प्रदाय है। इसके संस्थापक लकुलीश या नकुलीश थे, जिन्हें भगवान शिव के 18 अवतारों में से एक माना जाता है।

इस सम्प्रदाय के अनुयायियों को पंचार्थिक कहा गया है। इस मत के प्रमुख सैद्धांतिक ग्रंथ पाशुपत सूत्र हैं।

पाशुपत सम्प्रदाय का गुप्त काल में अत्यधिक विकास हुआ। इसके सिद्धांत के तीन अंग हैं- पति(स्वामी), पशु (आत्मा), पाश (बंधन) पशुपति के रूप में शिव की उपासना की जाती थी 🛕

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कापालिक संप्रदाय-

🛕 कापालिकों के इष्ट देव भैरव थे जो शंकर का अवतार माने जाते थे यह संप्रदाय अत्यंत भयंकर और असुर प्रवृत्ति का था इसमें भैरव को सुरा और नरबलि का नैवेद्य चढ़ाया जाता था

इस संप्रदाय का मुख्य केंद्र श्रीशैल नामक स्थान था जिसका प्रमाण भवभूति की मालती माधव में मिलता है 🛕 

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कालामुख संप्रदाय-

🛕 इस संप्रदाय के अनुयायी कापालिक वर्ग के होते थे किंतु वे उनसे भी अधिक अतिवादी तथा प्रकृति वादी थे शिव पुराण में उन्हें महाव्रत धर कहा गया है

इस संप्रदाय के अनुयायी नर कपाल में भोजन जल तथा सुरा पान करते थे शरीर पर भस्म लगाते थे । 🛕

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